Self written poem
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डॉ. सीमा बंसल द्वारा लिखित कविता है। यह वास्तविकता पर आधारित कविता है। जिसमें उन्होंने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है । ये कविता डॉक्टर सीमा ने कांदिवली मेडिकल एसोसिएशन द्वारा आयोजित KMA Art Festival में प्रस्तुत की थी।

चेहरे...
रोज़ रोज़ नए चेहरे तो दिखते हैं मगर
जिनको जानते थे वो भी आज नए लगते हैं।

जिन चेहरों पर कभी अपनापन था,
वहीं चेहरे आज अपने पन का नकाब पहने हैं।

जीवन की भागदौड़ में समय निकल गया शायद ...
तभी ये चेहरे नए नए से लगते है।

चेहरे कहां बदले है? समय बदल गया हैं अब ...
मिलोगे तो लगेगा कल परसो ही तो मिले थे।

चेहरों की हसी वो ही हैं, मासूमियत भी ...
सदियां गुज़र गई अपनों से मिले हुए।

सबको एकदूसरें से मिलने की आस तो है,
पर शुरुआत कौन करे उसका सबको इंतेज़ार है।

खुदकी व्यस्तता का चोला ओढ़ कर कहते रहें हम के
जाने क्यों चेहरे बदलें बदलें से लगते है?

गुज़रे हुए कुछ पल, वह मीठी बातें याद तो करो
जो अपनो के साथ तुमने कभी
गुजारे थे वह जज़्बात याद तो करो।

चेहरे....
रोज़ रोज़ नए चेहरे तो दिखते हैं,
जिनको जानते थे वो भी आज नए लगते हैं।

जिन चेहरों पर कभी अपनापन था,
वहीं चेहरे आज अपने पन का नकाब पहने हैं।

डॉ. सीमा बंसल

14 Comments

    1. Jaya Mishra

      Society is now socially distanced – written and expressed directlyfrom the heart.our genaration is particularly feeling the difference.
      Good effort
      You can continue addingmore under the same heading like madhushala in the same poetic format .
      So far so good

  1. Praful M Lale

    चेहरे की हसी दिखावट सी हो रही है असल ज़िन्दगी भी बनावत सी हो रही है
    अनबन बढ़ती जा रही रिश्तों में भी अब अपनों से भी बग़ावत सी हो रही है
    पहले ऐसा था नहीं जैसा हूँ आजकल मेरी कहानी कोई कहावत सी हो रही है
    दूरी बढ़ती जा रही मंज़िल से मेरी चलते चलते भी थकावट सी हो रही है
    शब्द कम पड़ रहे मेरी बातों में भी ख़ामोशी की जैसे मिलावट सी हो रही है
    और मशवरे की आदत न रही लोगो को अब गुज़ारिश भी शिकायत सी हो रही है

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